Wednesday, April 22, 2015

क्षमा वीरस्य भूषणम......!

ईश्वर ने इंसान को बहुत सारी अच्छाइयों से नवाज़ा है। उन अच्छाइयों में एक अच्छाई है 'क्षमा'। किसी को किसी की भूल के लिए क्षमा करना और उस व्यक्ति को आत्मग्लानि से मुक्ति दिलाना एक बहुत बड़ा परोपकार है । 'क्षमा' इंसान का अनमोल व सर्वौतम गुण है, क्षमाशील व्यक्ति हमेशा संतोषी, वीर, धेर्यशील, सहनशील तथा विवेकशील होता है। यह व्यक्ति हमेशा शांतिप्रिय तथा मानसिक रूप से संतोषी होता है। वह हमेशा दूसरो का भला करने में विश्वास रखता है। क्षमा करने की प्रक्रिया में क्षमा करने वाला, क्षमा पाने वाले से कहीं अधिक सुख पाता है। छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी ग़लती को किसी भी हाल में,  समय में वापिस जाकर ठीक नहीं किया जा सकता । लेकिन वर्तमान में उसे सही करने के लिए 'क्षमा' से बड़ा ना कोई शास्त्र है ना ही कोई शस्त्र । अगर आप किसी की भूल को माफ़ करते हैं तो उस व्यक्ति की तो आप सहायता करते ही हैं, साथ ही साथ आप अपनी भी सहायता करते हैं। 

'क्षमा' कहने में छोटा सा शब्द है लेकिन असल ज़िन्दगी में इसका बहुत बड़ा महत्व है, 'क्षमा' शब्द बेशक़ छोटा सा है लेकिन किसी के सामने इसका उच्चारण करना बहुत कठिन है। क्षमा करना ओर क्षमा माँगना दोनों ही जीवन के मार्ग में महत्वपूर्ण है। क्षमा मांगने वाला मनुष्य अपने मन के अन्दर के अंहकार का विनाश करके दूसरे इंसान से अपनी गलती की क्षमा याचना करता है, क्षमा देने वाला व्यक्ति भी अपने अंहकार से मुक्त होकर क्षमा मांगने वाले व्यक्ति को माफ़ करता है, इससे दोनों के मन के अन्दर अंहकार का नाश होता है, क्षमा से बहुत हद तक मानव जीवन में अंहकार रुपी अवगुण को ख़त्म किया जा सकता है । 

अंहकारी मनुष्य प्रायः क्षमा शब्द से बहुत दूर होता है, इसलिए आवश्यकता है हृदय से अपनी गलती मानकर दिल से माफ़ी माँगना और भूलकर भी उसे फिर ना दोहराना । याद रखें कि क्षमा मांगने वाला और क्षमा देने वाला दोनों ही बड़े महान माने जाते है लेकिन क्षमा करने वाला क्षमा मांगने वाले से हमेशा बड़ा होता है। जिसने भी अपनी गलती मानकर क्षमा की भावना को सीख लिया वह भी संसार में बहुत ही महान और वीर माना जाता है, कहा भी गया है “क्षमा वीरस्य भूषणम" अर्थात “क्षमा वीरो का आभूषण होता है।“ 'क्षमादान' संसार में सबसे बड़ा दान माना जाता है ।   

जैसा कि मैंने पहले भी कहा है और यह एक कटु सत्य है कि क्षमा माँगने या क्षमा करने के लिए व्यक्ति को अपने अहम् से ऊपर उठ कर सोचना पड़ता है और यह एक कठिन काम है ।ऐसा सत्कर्म एक सहनशील व्यक्ति ही कर सकता है । कभी आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि अपनी रोज़ की ज़िन्दगी में हम कितनों को क्षमा करते हैं और कितनों से क्षमा पाते हैं ।कितना आसान है किसी से एक शब्द sorry कह कर आगे निकल जाना और बदले में अपने आप ही ये सोच लेना कि उस व्यक्ति ने हमे माफ़ भी कर दिया होगा । लेकिन सच्चे हृदय से क्षमा माँगने की बात ही कुछ और है, ऐसा करने से सही मायने में मन को शान्ति मिलती है। सोचिये ज़रा क्या होता अगर हमारे माता-पिता हमारी भूलों के लिए हमें क्षमा नहीं करते? क्या हो अगर ईश्वर  हमें  हमारे अपराधों के लिए क्षमा करना छोड़ दे?  इसलिए अगर हम किसी को क्षमा नहीं कर सकते तो हमें भी ईश्वर से अपने लिए माफ़ी की उम्मीद नहीं करनी चाहिए ।अगर क्षमा नाम की भावना इस संसार में ना हो तो कोई किसी से कभी प्रेम ही नहीं कर पायेगा…'क्षमा बिना प्रेम के संभव नहीं है और प्रेम बिना क्षमा के हो ही नहीं सकता । 

एक खुशमिजाज़ इन्सान अधिक देर तक दूसरों को भी नाख़ुश नहीं देख सकता। अगर आप सकारात्मक व्यक्तित्व के मालिक हैं तो आप अपने आस-पास भी सकारात्मकता ही फैलायेंगे. कहते हैं "Idiots neither forgive, nor forget. Naive forgive and forget, but a true Wise Man forgives, but NEVER forgets." मूर्ख व्यक्ति ना क्षमा करते हैं न भूलते हैं, भोले-भाले लोग क्षमा भी कर देते हैं और भूल भी जाते हैं, लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति क्षमा कर देता है पर भूलता नहीं है” लाफ़ा मारना, गाली देना, हमेशा नकारात्मक बातें कहना, सबसे आसान काम है, लेकिन माफ़ करना बहुत हिम्मत का काम है ।
इसलिए अगर आप अपनी रोज़ की ज़िन्दगी में अपने अपराधियों को क्षमा करते हैं तो ये आप का अनजाने में उनपर किया गया सबसे बड़ा उपकार होता है ।   
कहा भी गया  है - गलती करना इंसानी फ़ितरत है लेकिन माफ़ करना ईश्वरीय गुण है। 
माफ़ करना अँधेरे कमरे में रौशनी करने जैसा होता है, जिसकी रौशनी में माफ़ी मांगने वाला और माफ़ करने वाला दोनों एक दूसरे को और करीब से जान पाते हैं। माफ़ करके आप किसी को एक मौका देते हैं अपनी अच्छाइयों को साबित करने का ।  

क्षमा करने और क्षमा माँगने का जब भी कोई सुअवसर मिले उसका सदुपयोग करना चाहिए, क्योंकि क्या मालूम फिर यह मौका मिले ना मिले। इसीलिए तो कहा जाता है कि मरने वाले को हमेशा क्षमा कर देना चाहिए। शायद इसलिए कि उस इंसान को फिर कभी माफ़ी मांगने का मौका नहीं मिलेगा या इसलिए कि आपको फिर उसे कभी माफ़ करने का मौका न मिले।
हम किसी ज़िन्दगी की सूखी ज़मीन पर माफ़ी की दो-चार बूंदों की बारिश कर पायें तो हो सकता है कि उस सूखी ज़मीन पर आशाओं, और मुस्कुराहटों के फूल खिल उठें.
इसलिए ज़िन्दगी में रुठिये, मनाइए, शिकवे-शिक़ायत, प्यार, प्रीत, मोहब्बत जम के कीजिये और थोड़ी सी जगह 'माफ़ी' के लिए भी रखिये। 

3 comments:

  1. शास्त्री जी,
    हृदय से आभारी हूँ।

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  2. पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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    1. सक्सेना साहेब,
      हौसलाअफ़्ज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया।

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