Wednesday, June 27, 2012

जो मुझे अधूरा समझे, वो नगण्य है मेरे लिए,

(ब्रेस्ट कैंसर को हरा कर आने वाली उन विजयी महिलाओं को समर्पित)

सुन रही हो मौत !
देख लो !
मैंने तुम्हें हरा दिया,
'मुझसे चूक हो गयी'
कहने के सिवा रास्ता क्या
बचा था तुम्हारे पास ?
मेरे पीछे-पीछे,
हर घडी तुम प्रदक्षिणा
करती रही,
मैंने भी कटिबद्ध होकर
तुझसे पीछा छुड़ा लिया ।
मेरा मातृत्व, मेरे वक्ष पर
टिका कोई भाव नहीं,
जो इनके कट जाने से गिर जाएगा !
वो तो मेरे रोम-रोम में बसा है
प्रस्फुटित होता ही रहेगा
मेरा ममत्व, अनादिकाल तक ।
हाँ...
कुछ भाव जो गाहे-ब-गाहे
दिखते थे मेरे मुख पर,
उनका शास्वत आधिपत्य
अब हो गया है, मेरे उर-आनन् पर
संतुष्टि, गौरव, विजय, साहस, ख़ुशी
और पूर्णता,
यही नाम हैं उनके ।
इनसब से सजी मैं दमकती हूँ ।
अब अपने परिजनों संग, मैं चहकती हूँ ।
निकल आई हूँ ,
ज्यामिति और अंकों के बंधन से,
जो मुझे अधूरा समझे
वो मेरे लिए भी नगण्य है,
और तू  ?
तू तो बस ताकती रह मेरा मुख
तब तक,
जब तक तेरा समय नहीं आ जाएगा !!
हाँ नहीं तो।.!!