Thursday, June 21, 2012

यहाँ, ऐसा ही होता है ...(संस्मरण)

मैं इनको सलाम करती हूँ, और खुद को ख़ुशकिस्मत मानती हूँ, कि मैं और मेरा परिवार इनके संरक्षण में रहता है 

(शिखा की पोस्ट पढ़ी थी तो मुझे भी कुछ याद आ गया )
जो इंसान अच्छा होता है वो बस अच्छा होता है । अच्छाई दिखाने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती है। अच्छाई कहीं भी, कैसे भी नज़र आ ही जाती है। आपको बार-बार बताने की ज़रुरत नहीं होती कि आप कितने अच्छे हैं। जैसे बुराई नहीं छुपती, वैसे ही अच्छाई नहीं छुपती। अगर आप अच्छे हैं तो, अच्छे ही रहेंगे चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। अच्छाई बड़ी सरल सी चीज़ है, अगर आप उसे छुपायें तो छुपती नहीं है, और अगर दिखाना चाहें तो दिखती नहीं है। अच्छाई बैनर पर लिखी कोई तहरीर नहीं, जिसे कोई पढ़ कर जान जाएगा आप बहुत अच्छे हैं। अगर आप सचमुच अच्छे  हैं, तो आपकी चुप्पी भी बता देगी।

बात कुछ साल पहले की है। मैं ओट्टावा के लोकल टेलीविजन के लिए काम करती थी, पार्ट टाइम। यहाँ हर शुक्रवार को साउथ एशियन कम्युनिटी का अपना प्रोग्राम आता है 2 घंटे के लिए, जिसमें लोकल न्यूज़, इवेंट्स और कुछ सांस्कृतिक एवम मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं। उन दिनों उस प्रोग्राम की होस्ट मैं ही थी। दीपावली आने वाली थी और उसके लिए मैं एक गाने की रेकॉर्डिंग, कैनेडियन पार्लियामेंट के परिसर में कर रही थी। हमने कोई परमिशन नहीं लिया था। बस हम रेकॉर्डिंग कर रहे थे। इंडिया गेट के सामने जिस तरह अमर जवान ज्योति हमेशा प्रज्वलित रहती है, वैसी ही एक ज्योति यहाँ के पार्लियामेंट के परिसर में भी चौबीस घंटे प्रज्वलित रहती है। क्योंकि  ज्योतिपर्व के लिए यह प्रोग्राम था, इसलिए इससे बेहतर लोकेशन और दूसरा मेरी नज़र में नहीं हो सकता था। 

जाड़े के दिन थे, वैसे भी जाड़े में दिन छोटे हो जाते हैं। लाख कोशिशों के बावज़ूद भी सूरज ढलने से पहले हम अपनी रेकॉर्डिंग पूरी नहीं कर पा रहे थे। रौशनी अब कम होती जा रही थी और हमलोग रेकॉर्डिंग कम रौशनी में ही किये जा रहे थे। मन में एक भय भी अब समाता जा रहा था। सेंसिटिव इलाका है, आये दिन आतंकवादियों की खबरें आतीं ही रहतीं हैं, ऊपर वाले के फज़ल से हमारी त्वचा का रंग भी आतंकवादियों से काफी मिलती-जुलती  है। जो अक्सर हमारे विरोध में चली जाती है। पार्लियामेंट की बात थी और वो भी 911 के बाद की बात, हर तरफ पुलिस की सुरक्षा मौजूद थी। कई पुलिस की गाड़ियाँ दूर से बैठ कर हम पर नज़र रखे हुए थीं।

इतने में देखा एक पुलिस की गाड़ी बहुत धीरे-धीरे बिना आवाज़ किये हुए चलती हुई, हमलोगों के क़रीब आकर रुक गयी। हमलोगों ने सोच लिया कि अब तो हम मुसीबत की गिरफ्त में आ ही गए...पास आकर उस गाडी ने खुद को आगे पीछे किया और अपनी हेड लाईट जला कर सीधा मुझ पर फोकस कर दिया। घबराहट के मारे मुझे अब पसीना आने लगा। उस पुलिस वाले ने कुछ नहीं बोला। लेकिन उसके इस काम से लाईटिंग बहुत अच्छी हो गयी...अब वो पुलिस वाला चलता हुआ हमारे पास आया...हमारे तो मन में चोर था ही, उसे देखे ही मैंने कहा...Officer ! we are almost done and we will be leaving soon. उसने मुस्कुरा कर कहा, No problem, take your time. You just go ahead and do your job. I have just come to ask you, if this much light is enough for your recording . अपनी कार की हेड लाईट की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा। If you need more lights we can bring in some more cars. बोल कर उसने दूसरी गाड़ियों की ओर देखा, जहाँ बैठे पुलिस वाले बस उसके इशारे का इंतज़ार कर रहे थे...मैं हैरान रह गयी थी । कहाँ तो हमारी घिघी बंधी हुई थी कि अब कुछ न कुछ पंगा होगा और यहाँ तो कुछ और ही बात हो गयी। खैर मैंने भी कह ही दिया एक और गाडी आ जाती तो अच्छा था, उसने फट सिटी मारी और दनदनाती हुई दूसरी गाड़ी आ गयी, फटाफट दूसरी गाड़ी  ने बैक किया और हेड लाईट जला कर मुझपर फोकस कर दिया। बातों-बातों में ये भी पता चला कि कहीं मैं डिस्टर्ब न हो जाऊं इसलिए वह बहुत धीरे-धीरे आया था, ताकि कोई आवाज़ न हो, और उसकी गाडी की आवाज़ हमारी रेकॉर्डिंग में न आ जाए। ऐसे हैं यहाँ के पुलिस वाले। उन्हें मालूम है उनकी नौकरी, पब्लिक की मदद के लिए है, परेशान करने के लिए नहीं। अब मेरी रेकॉर्डिंग के लिए लाईटिंग परफेक्ट थी। आराम से मैंने अपनी रेकॉर्डिंग की और उनको दिल से धन्यवाद देकर चली आई। मेरे घर के बहुत पास ओट्टावा पुलिस का हेड ऑफिस है, जहाँ लगभग 7000 पुलिस कर्मी बैठते हैं, जब भी मिलते हैं, रास्ते में आते जाते, मुस्कराहट भरा अभिवादन हो ही जाता है।

हम हिन्दुस्तानी पुलिस से ये उम्मीद ही कहाँ करते हैं। मैं तो कल्पना में भी ऐसा कुछ भारतीय पुलिस से उम्मीद नहीं करती। हमें तो उम्मीद होती है उनसे अपना पॉवर दिखाने की, अपना वर्चस्व महसूस कराने की। शायद पुलिस में भरती होते साथ हिन्दुस्तानी अपने मानवीय गुण भूल जाते हैं। जबकि वो पुलिस बाद में हैं, इंसान पहले।
(लिखते-लिखते मुझे दो और वाकये याद आ गए जो हिन्दुस्तान में घटित हुए हैं, घबराइये नहीं दोनों बहुत ही सुखद हैं, भारत में भी अच्छे पुलिस वाले हैं। बेशक कम हैं। वो संस्मरण अगली बार )