Wednesday, May 2, 2012

ज़रुरत है हिंदी साहित्य के विकास के लिए....

'पुरानी प्रविष्टि'
ज़रुरत है हिंदी पुरस्कारों के लिए,
कवियों, लेखकों और साहित्यकारों की,
एक कवयित्री चाहिए,
जिसका रंग गोरा, 
कद ५ फीट ३ इंच
और बायें गाल पर तिल हो,
जिसने ख़ूब ख़ूबसूरती पाई हो,
और अपनी हर कविता में
मर्दों की, की धुनाई हो,
ऐसा हो तो और अच्छा हो 
कि उसके हर लेख में
नारी शक्ति की ही चर्चा हो,
एक युवा कवि चाहिए
जो लगभग ५५ का हो,
जो भी उसने लिखा हो  
कोई समझ न पाया हो,
चाहे पहले कुछ भी लिखा हो,
पर अब क्षेत्रीयता विरोध अपनाया हो,
साथ ही यह पक्का कर लेना
वो यू.पी., बिहार का जाया हो, 
दलित वर्ग का भी कवि देखो
वह पैदायशी दलित होना चाहिए, 
मोटा-ताज़ा ना हो
दलित ही दिखना चाहिए,
एक और कैटेगोरी आई है
जो धर्म निरपेक्षता कहलाएगी,
इसमें सिर्फ़ और सिर्फ़ 
मुसलमान कवि ही आएगा,
जो अलीगढ़ के आस-पास 
ही पाया जाएगा, 
कैसे भी पकड़ कर लाओ 
उसको हमारे पास,
बस हिन्दू-विरोधी न हो
यह बात होनी है ख़ास,
बाल कवियों की भी श्रेणी है
यह कवि उस जगह पाओगे, 
जहाँ बच्चे ग़ायब होते ज्यादा 
ढूँढने का बस तुम कर लो इरादा,
मझोले कद का हो और शक्ल से
शरीफ लगता हो,
अन्दर से चाहे घाघ हो,
पर ऊपर से ख़ूब जंचता हो,
इतने से ही हमारा सारा काम
अजी चल जाएगा,
वर्ना हिंदी-विकास का कोटा
साफ़-साफ़ रुल जाएगा, 
अरे जल्दी कुछ करो भाई
वर्ना समझो कि शामत आई,
फण्ड अलोकेशन समाप्त होने का 
महीना आया है,
और ट्रेजरी ने भी 
जम कर याद दिलाया है
अगर ये राशि नहीं खर्ची तो,
वो सारे पैसे ले जायेगी
और हिंदी साहित्य पुरस्कार की
नैयाँ ऐवें ही डूब जायेगी,
हिंदी विकास का धंधा 
फिर मंदा हो जाएगा,
और जाने कितनों के 
घर का चूल्हा,
फिर ठंडा हो जाएगा ...

और अब एक गीत 'आपके हसीं रुख पर आज नया नूर है, मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कुसूर है'