Saturday, April 21, 2012

तू बोल मेरी ज़िन्दगी, क्यों इतनी तू बेज़ार है

थोडा सा जायका बदलने की कोशिश है आज..

बोल मेरी ज़िन्दगी, तू इतनी क्यूँ बेज़ार है 
साँस तो है चल रही, पर लग रही तलवार है

बिक रहे हैं लोग सब, सुबहो-शाम हर तरफ
ये जन्नते-आदम नहीं, कोई चोर-बाज़ार है 

है कोई खड़ा हुआ, बुलंदियों की शाख़ पर
और कोई दिखा मुझे, ज्यूँ गिरी हुई दीवार है 
 
ज़मात में नीलाम मैं,  होने लगी हूँ देख लो
उसे कोई ख़बर करो, वो मेरा ख़रीददार है

उतर गए ख़याल सब, रूह के सफ़े पे अब
खौफ कोई न कहे, अरे तस्वीर उसकी यार है   
 वादियाँ मेरा दामन ...आवाज़ 'अदा' की..