Saturday, April 14, 2012

गज़ब नज़र में, सुरूर था....!


गज़ब नज़र में, सुरूर था,
यूँ लगा वो, नशे में चूर था

है मोहब्बत की, तश्नगी अनबुझी 
वो अपनी वफ़ा पे, मगरुर था

न डूबी कश्ती, उन हादसों में
हाँ, तूफाँ का इरादा, ज़रूर था

बोला मेरे घर पे, न आया कभी 
है शुबहा मुझे, वो आया ज़रूर था 

चाहत में उसकी मैं, चाँद बन गई 
इस बात का मुझे भी, ग़ुरूर था