Wednesday, April 4, 2012

महिलायें 'कम क़ीमत के सामान के लिए, बहुत भारी क़ीमत चुका रही हैं".....


स्त्री-पुरुष विमर्श कोई नया विषय नहीं है, ब्लॉग जगत के लिए ..गाहे-बगाहे इस पर नज़र पड़ती ही रहती है..और अनगिनत बार उठा-पटक हो चुकी है....

अपने देश से दूर दराज़ बैठी, अक्सर सोचती हूँ..कि हमारे देश की महिलाएं कितनी जागरूक हैं...अगर ऐसा नहीं होता तो क्या हम, लक्ष्मीबाई, चाँद बीवी, रज़िया सुलतान, इंदिरा गाँधी, सरोजिनी नायडू और न जाने कितनी वीरांगनायें और महान महिलाओं की वंशज हो पातीं क्या...??  शायद नहीं...!!

फिर भी अभी बहुत कुछ करना है...आम घरों की महिलाएं अगर ज्यादा नहीं, तो कुछ तो पीसी, घुटी आज भी हैं....

दो साल पहले  मैं रांची में थी, और अपनी एक ज़मीन पर, बाउंडरी वाल करवा रही थी...मेरा काम contract पर था...मुझे पता चला कि पुरुष मजदूर की मजदूरी,  महिला मजदूर की मजदूरी से अधिक है...सुन कर कुछ अजीब तो लगा था, फिर भी, यहाँ, बात समझ में आती है, महिला मजदूर शारीरिक रूप से, पुरुष मजदूर से कम शक्तिशाली होती है..इसलिए यह भेद किया गया होगा...क्योंकि मजदूरी के काम में, कुछ ऐसे भी काम होते हैं, जिन्हें शायद महिला मजदूर न कर पाती हों...

वापिस आने के बाद, कहीं एक आर्टिकल पढने को मिला, 'वालमार्ट' (WALMART), जो शायद दुनिया का सबसे बड़ा रिटेल स्टोर है...वहां भी महिलाओं और पुरुषों में wage gap है, मैं उन पदों की बात कर रही हूँ, जिनमें शारीरिक नहीं,  मानसिक काबिलियत की बात होती है, उस पदों पर नियुक्त महिला और पुरुष कर्मी, के वेतन में अगर, भेद-भाव है, तो यह सोचनीय स्थिति होगी ।

'वालमार्ट' जैसी कंपनी इस तरह का, सौतेला व्यवहार किस आधार पर करती है, एक ही तरह के काम के लिए महिला कर्मचारी और पुरुष कर्मचारी की तनख्वाह में भेद कैसे कर सकती है ? यह चौंकाने वाली बात है,  क्योंकि ऐसा व्यवहार, कम से कम इन कंपनियों से अपेक्षित नहीं है... सोचनेवाली बात यह भी है कि, इस नीति के बारे में आम जनता को मालूम भी है ...त्रासदी यह भी है कि, यहाँ की तथाकथित प्रगतिशील सरकार भी, इस बारे में अच्छी तरह जानती है, फिर भी उनका, अपने कान में तेल डाल कर बैठे रहने की वजह, समझ में नहीं आता ??...हैरानी भी होती है कि,  ये उन्नत देश इस तरह की, अन्यायपूर्ण मानसिकता न सिर्फ रखते हैं, उनको धड़ल्ले से अभ्यास में भी लाते हैं... और अग्रणी देश भी कहाते हैं....वाह...!!!

वालमार्ट के विरुद्ध, एक क्लास सूट भी कोर्ट में डाला गया था, जिसे वहाँ की सुप्रीम कोर्ट ने, सीधे से ख़ारिज कर दिया...कारण बताया गया कि, एक साथ हज़ारों हज़ार  Employee,  इतना बड़ा क्लास सूट नहीं कर सकते, लेकिन इस कारण के पीछे, जो असली कारण,  समझ में आता है, वो ये होगा, अगर वालमार्ट के Employee केस जीत जाते तो, वालमार्ट के पास सिवा Bankrupt होने के और कोई विकल्प नहीं होता....जो बहुत बड़ा  नुक्सान होता, अमेरिका के लिए...कुछ भी हो, वालमार्ट बिलियन्स डालर्स का बिजिनेस तो लाता ही है बाहर से, अपने देश में....सुप्रीम कोर्ट का ऐसा एकतरफा फैसला लेना, ये भी साबित करता ही है, कि वाल मार्ट,  अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट तक को, अपनी आस्तीन में रखता है....

वालमार्ट के ८०% कर्मचारी, महिलाएं हैं..जिनको पुरुषों की अपेक्षा, कम तनख्वाह मिलती है और प्रोमोशन के लिए भी अधिक इंतज़ार करना पड़ता है...

वालमार्ट, भूलता है कि, आज वो अगर, दुनिया में, सबसे बड़े रिटेलर होने की, गद्दी पर बैठा है, वो उसे वहाँ तक पहुंचाने के लिए, महिलाओं ने ही अपना खून-पसीना बहाया है...और राज़ की बात ये भी है, कि इस ८०%  महिला कर्मचारियों में,  ९०% महिलाएं विजिबल माइनोरिटी की हैं...अर्थात, हिन्दुस्तानी, पाकिस्तानी, अफ्रीका मूल की या अन्य देशों की महिलाएं....

आप विश्वास कीजिये, इन देशों के, किसी भी वालमार्ट में आप चले जाएँ...आपको महिला कर्मचारी ज्यादा नज़र आयेंगीं...उनमें से अधिकतर महिला कर्मचारी, भारतीय मूल की ही होंगी....मतलब ये हुआ कि, हमारी बहनें, सिर्फ भारत में ही दोयम दर्ज़ा नहीं पा रहीं, भारत से बाहर भी सेकेंड ग्रेड सिटिज़न हैं...इसमें कोई शक नहीं, हमारी, महिलायें 'कम क़ीमत के सामान के लिए, बहुत भारी क़ीमत चुका रही हैं".....

हाँ नहीं तो..!!